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डायन -23-Dec-2021

डायन 


भाग 1 

राजस्थान का एक गांव है मान्यावास । आदिवासी बहुल अति पिछड़ा । विकास अभी तक पहुंचा नहीं है वहां पर । लोगों की रूढ़ियां, मान्यताएं , परंपराऐ और रीति रिवाज विकास को दूर रखने में भरपूर कामयाब रहीं हैं । जिस प्रकार घने वृक्ष सूरज की किरणों को धरती तक नहीं पहुंचने देते हैं उसी प्रकार इन रूढ़ियों ने भी विकास के पहुंचने में अवरोध का काम किया है । जिस प्रकार एक "गुबरैला" गोबर में ही रहना पसंद करता है , उसी प्रकार मान्यावास गांव के लोग भी अपनी रूढ़ियों , मान्यताओं से बाहर निकलने के जरा भी इच्छुक नहीं थे । 
सरकार ने यहां एक विद्यालय खोला । यद्यपि वह उच्च प्राथमिक स्तर का था लेकिन उसमें भी नामांकन ज्यादा नहीं था । लोग अपने बच्चों को अधिक से अधिक प्राथमिक स्तर तक ही पढ़ाते थे । उनका मानना है कि भेड़ बकरियों को चराने के लिए भी तो कोई चाहिए ना । अगर बच्चों को विद्यालय भेज देंगे तो बकरियां कौन चरायेगा ? 

गांव में "नीम हकीमों" की बाढ आई हुई थी । कोई बंगाली दवाखाना तो कोई मद्रासी दवाखाना खोलकर बैठा था । कोई शुद्ध "सांडे के तेल" से बड़ी-बड़ी बीमारियों का इलाज कर देता तो कोई "काला जादू" चलाकर सब कुछ ठीक करने का दावा करता था । सरकार ने लोगों पर उपकार करके एक आयुर्वेदिक औषधालय खोल दिया था । कभी कभार वहां पर भी लोग दिख जाते थे और अपनी बीमारियों का इलाज कराते थे । दरअसल सभी इलाज एक साथ चलते थे और ठीक करने का श्रेय सभी लूटते थे ।

लोगों के पास काम धाम कुछ खास था नहीं । खेती किसानी के साथ साथ पशुपालन का काम भी करते थे लोग । सरकार उनको "मनरेगा" में रोजगार प्रदान करके अपने कर्त्तव्य की इति श्री कर लेती थी । वैसे भी आप जबरन किसी का विकास नहीं कर सकते । जो व्यक्ति स्वयं चाहता है कि वह विकसित हो और इसके लिए वह प्रयास भी करता हो तो वह निश्चित रूप से विकास की पायदान चढ़ जाता है लेकिन लोगों को जबरदस्ती तो विकास के पहाड़ पर नहीं चढ़ा सकते हैं न । आखिर "लोकतंत्र" की इच्छा भी यही है । लोकतंत्र मतलब जनता की इच्छा । जनता जो चाहती है , सरकार वही काम करतीं है । जनता ने चाहा कि वे अनपढ़, अशिक्षित, असभ्य, अविकसित रहें तो सरकार ने भी जनता की आकांक्षाओं को पूरा करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी और उन्हें आजादी के इतने साल बाद भी वैसे ही बनाए रखा । 

गरीबी का साम्राज्य था । भुखमरी और कुपोषण के कारण बच्चे और महिलाएं ज्यादातर हड्डियों का ढांचा ही लगते थे । सरकार ने अहसान करते हुए महिला एवं बाल विकास कार्यालय वहां खोल दिया । एक अधिकारी "सुमन" को भी वहां लगा दिया । उसकी सहायता के लिए दो सहायिकाएं और तीन अन्य व्यक्ति भी नियुक्त कर दिए । 

सुमन एक आधुनिक सोच वाली लड़की थी । अभी उसकी नौकरी लगी ही थी इसलिए दुनिया बदलने के सपने देखती थी । सरकारी अधिकारी और कर्मचारी वाली मानसिकता अभी उसमें नहीं आई थी । उत्साह उमंग से भरपूर । दृढ़ निश्चय वाली । कठोर परिश्रम और अनुशासन रखने वाली । उसने ठान लिया था कि वह गांव की औरतों और बच्चों का जीवन स्तर सुधार करके ही यहां से जायेगी । 

उसने अपने कार्यालय के भवन में ही एक "आंगनबाड़ी" केन्द्र खोल लिया । छोटे बच्चे , गर्भवती महिला और जच्चाओं के स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखने के लिए उसने ऐसा किया । सरकार ने उसकी मांग पर पौष्टिक आहार भी स्वीकृत कर दिया था । 

लोग उस आंगनबाड़ी केंद्र में औरतों और बच्चों को भेजने से डरते थे । पता नहीं औरतों को ये "मेमसाब" क्या पट्टी पढ़ा दे और ये औरतें पता नहीं क्या कर बैठें ? अगर खूंटा तुड़ाकर भाग गई तो गांव की इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी। सुमन ने अपनी सहायिकाओं द्वारा बहुत प्रयास किये कि लोग औरतों और बच्चों को आंगनबाड़ी केंद्र में भेजें जिससे उनको पौष्टिक आहार दिया जा सके, मूलभूत शिक्षा दी जा सके । किस्से कहानियों के द्वारा कुछ बातें समझाईं जा सकें लेकिन लोग हैं कि मानते नहीं । सुमन ने अब निश्चय कर लिया था कि वह स्वयं लोगों से मिलकर उनको समझायेगी और आग्रह करेगी कि उनको आंगनबाड़ी केंद्र पर नियमित भेजें । 

एक दिन वह अपनी दोनों सहायिकाओं के साथ जन संपर्क अभियान पर निकली । वह गांव के बीचों-बीच पहुंची ही थी कि उसे सामने से बड़े तेज कोलाहल की ध्वनि सुनाई दी । बच्चों का एक झुंड सा नजर आया उसे । बड़े जोर जोर से चिल्ला रहे थे बच्चे । धीरे धीरे वह कोलाहल पास आता गया । 

सुमन ने देखा कि एक अर्द्ध नग्न औरत सामने से चली आ रही है और बच्चे उसके पीछे-पीछे उसे लकड़ी, पत्थर मारते हुए आ रहे हैं । वे जोर जोर से "डायन डायन" का शोर भी कर रहे हैं । ऐसा लग रहा था कि ये बच्चे उस अर्द्ध नग्न औरत को गांव से बाहर निकाल कर ही दम लेंगे । उस औरत का चेहरा बड़ा डरावना लग रहा था । बाल बिखरे हुए थे जो मां चामुंडा की याद दिला रहे थे ।

सुमन अभी सोच ही रही थी कि  वह झुंड नजदीक आ गया । एक सहायिका आशा ने कहा " मैडम जी, एक तरफ हट जाओ । वो डायन आ रही है" । सुमन ये शब्द सुनकर चौंकी । इतने में दूसरी सहायिका बसंती ने उसे पकड़कर एक तरफ करने की कोशिश की । सुमन की तंद्रा भंग हुई । उसने बसंती से अपनी बांह छुड़ाई और बीच में तनकर खड़ी हो गई । आशा और बसंती दोनों एक किनारे खड़ी हो गई । 

"डायन" अब एकदम सामने आ गयी थी । बच्चे चिल्लाने लगे " हट जाओ मैडम । डायन आपको खा जायेगी" । सुमन अविचलित होते हुए वहां खड़ी रही । डायन अब एकदम उसके सामने आ गई थी । डायन ने सुमन को देखा और जोर से अट्टहास करने लगी । जितनी भी दुष्ट आत्माएं होती हैं वो लोगों को डराने-धमकाने के लिए अट्टहास करतीं हैं । लोग डरकर भाग जाते हैं और कहीं छुप जाते हैं । दुष्ट आत्माएं यही तो चाहती हैं । दुष्ट आत्माओं को अपनी ताकत पर और घमंड होने लगता है । यही तो उनकी पूंजी है । 

सुमन ने "डायन" की आंखों में सीधे आंखें डाल दी । डायन ने वैसी आत्म विश्वास वाली आंखें कभी देखी नहीं थीं । जो देखीं थीं वो भय से थर थर कांपती थीं । डायन एक बार तो सकपका गई । ये लड़की डरने के बजाय डरा रही है । डायन ने एक जोरदार "हुंकार" भरी पर सुमन जरा भी टस से मस नहीं हुई । 

बच्चे बड़े कौतुहल से यह सब घटना देख रहे थे । उन्हें बड़ा आश्चर्य हो रहा था । मैडम डायन से डर नहीं रहीं हैं । यह देखकर वे शांत हो गये थे । सुमन ने जोरदार डांट लगाते हुए उन्हें वहां से भगा दिया । अब केवल डायन और सुमन आमने-सामने खड़े थे । डायन ने अपने लंबे लंबे नाखूनों वाले दोनों हाथ सुमन के गले की तरफ बढ़ाए मगर सुमन दृढ़ता के साथ खड़ी रही । जब दोनों हाथ सुमन की गर्दन को छूने को हुए तो सुमन ने अपने दोनों हाथों से उन हाथों को मरोड़ दिया । डायन एक जोर की चीख के साथ वहीं दोहरी हो गई । 

असह्य पीड़ा से डायन कराह उठी । डायन की आंखों से आंसू गिरने लगे । सुमन ने उसे अपने गले से लगा लिया । डायन पहले तो झिझकी फिर सुमन से चिपक गई और फिर फूट फूट कर रोने लगी ।  उसकी हिलकियां आसमान तक जा रही थीं । सुमन ने उसे अपनी बाहों में कसकर जकड़ लिया । एक छोटे बच्चे की तरह डायन सुमन की बांहों में सिमट गई और फूट फूट कर रोती रही। सुमन ने उसके सिर पर एक मां की तरह हाथ फिराया और उसे सांत्वना देती रही । फिर अचानक डायन निढाल होकर सुमन के कंधे पर ही लुढ़क गई । 

सुमन ने अपनी दोनों सहायिकाओं को अपने पास बुलाया । वे डरते डरते आयीं तो सुमन ने कहा कि इसे सहारा देकर अपने केन्द्र पर ले चलो । दोनों सहायिका उसे सहारा देने लगीं । तीनों मिलकर उसे अपने केन्द्र ले आईं । 

सुमन ने इशारा किया और एक सहायिका ने चारपाई बिछा दी । उस पर दरी और चद्दर भी बिछा दिया । "डायन" को उस पर लिटा दिया । दूसरी सहायिका से कहा कि एक गिलास दूध तैयार कर दे । उसने फटाफट एक गिलास दूध गर्म करके मीठा मिलाकर तैयार कर दिया । सुमन ने उसे उठाया , अपनी गोदी में बिठाया और अपने हाथ से उसे दूध पिलाने लगी । "डायन" उसकी आंखों में देखती जा रही थी और दूध पीती जा रही थी । दूध पिलाने के बाद सुमन ने कहा कि थोड़ी देर सब लोग बाहर चले जायें और पर्दा लगा दें । 

सुमन ने उसे अपने साथ चारपाई पर लिटा लिया । उसके सिर पर हल्की हल्की थपकी देती रही और धीरे-धीरे कोई गीत गुनगुनाने लगी । डायन गहरी नींद में सो गई । सुमन भी उसके साथ साथ ही लेटी रही बिना हिले डुले । लगभग एक घंटे की नींद के बाद वह जागी । अब डायन का चेहरा एकदम मासूम सा दिख रहा था  जैसे किसी छोटे बच्चे का चेहरा होता है । सुमन ने उसे अपने हाथों से पानी पिलाया । डायन उसे एकटक देखती रही फिर अचानक रोने लगी । सुमन ने उसे अपने सीने में भर लिया । वह खूब देर तक ऐसे ही रोती रही । 

जब वह शांत हुई तो सुमन ने उसे पहनने के लिए अपना सलवार सूट दे दिया । डायन ने एक प्रश्न वाचक निगाहों से सुमन को देखा लेकिन सुमन ने मुस्कुराते हुए अपना सूट उसे पहना दिया और गीले तौलिए से उसका शरीर साफ करने लगी । उसके बाल उलझ कर झंकाड़ बने हुए थे । शरीर पर मैल की एक मोटी परत जम गई थी । पता नहीं कितने दिनों से वह नहाई नहीं थी । उसके बदन से बदबू आ रही थी । सुमन ने उसके चीथड़े बाहर फेंक दिये । 

इतने में एक सहायिका दोनों के लिए खाना ले आई । सुमन ने उसे अपने हाथ से खाना खिलाना चाहा लेकिन उसने उसे रोक दिया । डायन ने अपने हाथ से रोटी का एक कौर तोड़ा और सब्जी के साथ लगाकर उसे सुमन के मुंह की ओर बढ़ाय। सुमन ने उसके हाथ से वह कौर खाया और अपने को धन्य समझा । दोनों ने खाना समाप्त किया । 
क्रमशः 
शेष अगले अंक में 


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